
पारिवारिक पृष्ठभूमि
पिता श्री बांके बिहारी सिंह (स्वर्गीय ) और माता श्रीमती देवयानी देवी (स्वर्गीय) की चार संतानों में सबसे छोटे. मां गृहणी. धर्मपारायण महिला. खेती—किसानी के साथ पिता श्री बांके बिहारी सिंह गांव—जवार के सामाजिक—सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहें. वे ग्राम पंचायत के प्रधान रहे. पढ़ाई—लिखाई—शिक्षा के प्रति जागरूक थे.सीमित संसाधनों और संभावनाओं में भी उन्होंने शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया.
शिक्षा—अध्ययन
पढ़ाई की शुरुआत गांव में ही. माध्यमिक शिक्षा पूरी होने के बाद जयप्रकाशनारायण जी के नाम पर बने हाईस्कूल से मैट्रिक तक शिक्षा.हाईस्कूल से निकलने के बाद इंटर में पढ़ाई के लिए बनारस के उदयप्रताप कॉलेज (यूपी कालेज के नाम से मशहूर) में दाखिला.यूपी कॉलेज के बाद आगे ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला. पर, बनारस शहर मन को भा गया था. ग्रेजुएशन की ही पढ़ाई के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी दाखिले का अवसर मिला,तो इलाहाबाद से वापस फिर बनारस. बीएचयू से से स्नातक व अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई.बीएचयू के ही पत्रकारिता विभाग से डिप्लोमा स्तरीय प्रशिक्षण.
बीएचयू: बदलाव का पड़ाव
बीएचयू में पढ़ाई के दौरान जीवन में बदलाव आये. पढ़ाई के साथ ही सामाजिक—सार्वजनिक विषयों में रुचि जगी. धीरे—धीरे जुड़ाव भी शुरु हुआ.यह वह दौर था, जब जयप्रकाश नारायण जी के आह्वान पर और उनके नेतृत्व में छात्र आंदोलन आकार ले रहा था. बीएचयू में रहते हुए राजनीतिक गतिविधियों में सहभागी बनना शुरू किये. महामंत्री का चुनाव लड़े.कला संकाय से छात्र संघ के लिए चुने गये. इमरजेंसी के दौरान भूमिगत परचा—पोस्टर चिपकाने, बांटने का काम करने लगे. इसी आंदोलन के दौरान राजनीतिक सामग्री पढ़ने—लिखने की आदत लगी. इस आदत ने पत्रकारिता की ओर उन्मुख किया. करीब चार दशक तक सक्रिय पत्रकारिता में रहे. साहाशिये के स्वर को उभारने, बेजुबानों को आवाज देने, अनाम-गुमनाम नायकों को उभारने, उनके नायकत्व को स्थापित करना ही पत्रकारिता का मूल विषय बने, इस कोशिश में लगे रहे.
सामाजिक और सार्वजनिक जीवन
जयप्रकाश नारायणजी का गांव होने की वजह से श्री हरिवंश को जनसरोकार और बुनियादी राजनीति के सवालों को बचपन से ही देखने-जानने-समझने का मौका मिला.गांव में रहते हुए जयप्रकाश नारायणजी के निजी सचिव जगदीश बाबू से उनका आत्मीय रिश्ता बना. बाद में पढ़ाई के लिए बनारस जाने के बाद समाजवादी अर्थशास्त्री, राजनीतिक विचारक कृष्णनाथजी के यहां आना—जाना शुरू हुआ, सर्वसेवा संघ में आने—जाने की शुरुआत हुई. दादा धर्माधिकारी समेत कई लोगों को करीब से जानने का मौका मिला. सार्वजनिक चेतना का विस्तार होता रहा. जेपी जब जीवन के आखिरी दिनों में मुंबई के जसलोक अस्पताल में भर्ती थे, तब पत्रकार रूप में हरिवंश को वहां रहने का मौका मिला. उस दौरान जेपी से मिलने आनेवाले राजनीतिक लोगों को करीब से देखकर राजनीतिक मर्यादा, सरोकार सिखने का मौका मिला. बाद में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी के करीब आने, उनसे जुड़ने के बाद देश की राजनीति को जानने—समझने का मौका मिला.
आध्यात्मिक लगाव
बचपन से ही हरिवंश का लगाव—जुड़ाव आध्यात्म से रहा. मां का धर्मपारायण होना, गांव के ही लाला चाचा के संग साधु—संत—संन्यासियों से मिलना, जोगियों का गीत सुनना, सुर का भ्रमर गीत सुनना, इन सबने मिलकर बचपन में ही हरिवंश के मन में आध्यात्मिक रूझान की बुनियाद तैयार की. आगे चलकर यह विकसित होता गया. जीवन के अलग—अलग पड़ाव पर अनेक संतों—संन्यासियों—आध्यात्मिक व्यक्तियों से मिलना हुआ, उनसे समझने की कोशिश करते रहे. आध्यात्म के किताबों के प्रति रुचि बढ़ती गयी. मुंगेर योग विद्यालय के स्वामी सत्यानंद सरस्वती, स्वामी निरंजनानंद सरस्वती, योगदा आश्रम के आध्यात्मिक संत, इस्कॉन के राधानाथ स्वामी समेत अनेक आध्यात्मिक व्यक्तियों के संपर्क में आये. आध्यात्मिक दुनिया समझने के लिए महर्षी अरविंद, रमण महर्षी के आश्रमों में जाते रहे. कैलाश मानसरोवर की दुरूह यात्रा संतों के साथ की. रामकृष्ण मिशन आश्रम, भारत सेवाश्रम संघ, चिन्मय मिशन आश्रम, योगदा आश्रम, योग विद्यापीठ जैसे संस्थानों से आत्मीय जुड़ाव हुआ. अनोखे साधक संत भाईश्री के संपर्क में आये और उनसे निरंतर प्रेरणा लेते रहे.
कैरियर
रोजगार से संबंधित कैरियर के तीन आयाम—पड़ाव रहे. एक पत्रकारिता, दूसरा बैंकिंग सेवा और तीसरा कुछ माह के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करना. कैरियर के रूप में पत्रकारिता की शुरुआत ‘टाइम्स आफ इंडिया’ समूह से हुई. पर,पहला लेखन ‘जनवार्ता‘ के लिए. एक पत्र लेखक के रूप में, जिसे ‘जनवार्ता‘ के संपादक और तब के मशहूर पत्रकार श्यामा प्रसाद प्रदीप ने छापा था. बीएचयू में पत्रकारिता प्रशिक्षण कोर्स करने के बाद ‘टाइम्स आफ इंडिया’ समूह में ट्रेनी जर्नलिस्ट के रूप में चयन हुआ. फिर उसी समूह की हिंदी पत्रिका ‘धर्मयुग’ में उप-संपादक के रूप में 1977-1981 तक कार्यरत. 1981 में बैंक आफ इंडिया में अधिकारी के रूप में चयन हुआ. 1981 से 1984तक बैंक आफ इंडिया की सेवा में रहे. हैदराबाद व पटना में. इसी दरम्यान भारतीय रिजर्व बैंक में भी अधिकारी के रूप में चयन हुआ. पर, मन में पत्रकारिता रच—बस चुका था. भारतीय रिजर्व बैंक के अवसर को छोड़कर और बैंक आफ इंडिया की नौकरी छोड़कर पुन: पत्रकारिता में आ गये. कोलकाता के ‘आनंद बाजार पत्रिका‘ समूह की मशहूर हिंदी पत्रिका ‘रविवार’ से जुड़ गये. सहायक संपादक के रूप में. 1985 से 1989 तक वहां कार्यरत रहे. 1989 में रांची से प्रकाशित होनेवाले मृतप्राय अखबार ‘प्रभात खबर‘ से प्रस्ताव मिला. अक्तूबर 1989 में ‘प्रभात खबर’ से जुड़े.बतौर प्रधान संपादक. अगले ही साल देश के प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी बने. उन्होंने पीएमओ से जुड़ने का प्रस्ताव दिया. अतिरिक्त सूचना सलाहकार (संयुक्त सचिव) के रूप में पीएमओ से जुड़े. 1990 से जून 1991 तक. चंद्रशेखरजी के साथ वहां से इस्तीफा देकर 1991 में पुन: प्रभात खबर में वापसी. तब से जून 2016 तक, अखबार में प्रधान संपादक के रूप में कार्यरत रहे.
पत्रकारिता
सांस्थानिक रूप में पत्रकारिता के तीन पड़ाव बने. ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’ और ‘प्रभात खबर’. पत्रकारिता के कैरियर में तीनों का अपना खास महत्व रहा. ‘धर्मयुग’ में यशस्वी संपादक धर्मवीर भारती से लेकर गणेश मंत्री जैसे पत्रकार का सान्निध्य और मार्गदर्शन मिला, जिसका गहरा असर हमेशा रहा. पत्रकारिता की वैचारिकी और सरोकार का पाठ सिखने का अवसर कैरियर के आरंभिक दिनों में ही मिला. ‘रविवार’ पत्रिका से जुड़ने के बाद बिहार,झारखंड (तब अविभाजित बिहार का ही हिस्सा) समेत देश के कई इलाकों में, ग्रासरूट रिपोर्टिंग का अवसर मिला. साथ ही संपादकीय विभाग में अहम जिम्मेवारी मिलने से नेतृत्व करने का आत्मविश्वास आया. एसपी सिंह जैसे वरिष्ठ और प्रयोगधर्मी पत्रकार के साथ काम करने का मौका मिला.पत्रकारिता के कैरियर में अहम और सबसे लंबा पड़ाव बना ‘प्रभात खबर’. सिर्फ पड़ाव ना कहकर, इसे अखबार से एकाकार हो जाने का रिश्ता कह सकते हैं. करीब 28 साल तक प्रभात खबर के साथ जुड़ाव और सफर रहा. जब ‘प्रभात खबर’ से जुड़ाव हुआ, तब यह बंदप्राय अखबार था.सरकारी दफ्तरों में भेजने के लिए प्रकाशित होनेवाला अखबार. ऐसे अखबार से जुड़ने का फैसला लेने के बाद अनेक लोगों ने मर्सियागान किया कि यह अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का फैसला है. पर, मृतप्राय—बंदप्राय अखबार हिंदी की क्षेत्रीय पत्रकारिता का मॉडल अखबार बना. दस पूर्वी भारत के दस स्थानों से प्रकाशित होनेवाला अखबार ना. पत्रकारिता में हाशिये के स्वर को बुलंदी देनेवाला अखबार बना. संसाधन के अभाव के बावजूद निरंतर नवाचार और प्रयोग की वजह से हिंदी पत्रकारिता का उम्दा और नजीर अखबार बना. ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’ और ‘प्रभात खबर’ से तो कैरियर के रूप में जुड़ाव रहा, पर इन तीनों से इतर अन्य जगहों पर भी लेखन चलता रहा.इनमें ‘नवभारत टाईम्स’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘फस्टपोस्ट’ वेबसाइट, संडे (अंग्रेजी) जैसे प्रकाशन प्रमुखता से शामिल हैं.भारतीय प्रेस संस्थान की पत्रिका ‘विदुरा’ के सलाहकार संपादक रहें. पत्रकारिता के जरिये सामाजिक राजनीतिक बदलाव में सार्थक व सक्रिय हस्तक्षेप के लिए इंडिया टुडे, तहलका जैसी पत्रिका ने विशेष स्टोरी की. दिल्ली से प्रकाशित प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका ‘सिविल सोसाइटी’ ने प्रभात खबर को भंवरजाल से निकाल हिंदी पत्रकारिता और क्षेत्रीय पत्रकारिता का एक मानक या मॉडल बनाने के लिए व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेष कवर स्टोरी की.
सम्मान/पुरस्कार
पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक सम्मान व पुरस्कार मिले. उनमें कुछ प्रमुख सम्मानों की बात की जाए तो 1996 में अखिल भारतीय पत्रकारिता परिषद, कोलकाता ने महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान दिया. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माधव राव सप्रे पत्रकारिता एवं शोध संस्थान ने प्रथम माधव राव सप्रे सम्मान 2008 में दिया. एक्सचेंज फॉर मीडिया ने देश के शीर्षस्थ 50 पत्रकारों में शीर्ष तीन पत्रकारों में शामिल कर मीडिया महारथी का सम्मान दिया. 2012में दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में हुए नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी में योगदान के लिए सम्मानित किया गया. पत्रकारिता में योगदान के लिए आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विचार मंच, मेहरौली, दिल्ली द्वारा आचार्य तुलसी सम्मान, 2014 में दिया गया.
समितियों/संगठनों में सक्रियता
पत्रकारिता और सार्वजनिक जीवन में आने के बाद अनेक संगठनों और समितियों से जुड़ाव रहा. 2019 में मीडिया की प्रतिष्ठित संस्था एक्सचेंज फार मीडिया ने इनबा अवार्ड—2019 के लिए ज्यूरी प्रमुख बनाया. केके बिड़ला फाउंडेशन जर्नलिस्ट रिसर्च फेलोशिप के निदेशक मंडल में सदस्य रहे. भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय के हिंदी कांसुलेट में 1991 से 1996 तक सदस्य रहे. 1992 में बिहार सरकार के राजभाषा पुरस्कार चयन समिति में सदस्य बनाया. 2001 और 2004 में झारखंड विधानसभा की श्रेष्ठ विधायक चयन समिति में सदस्य बनाया. 1999—2002 तक भारत सरकार के रेल मंत्रालय के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य रहे. 1998 से 2003 तक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में प्रबंध समिति सदस्य रहे. भारत सरकार द्वारा लोकनायक जयप्रकाश नारायण जन्म शताब्दी समारोह आयोजन समिति में सदस्य नामित हुए. एशियन डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर (आद्री) में आर्गेनाइजिंग कमिटी सदस्य ( बिहार) और झारखंड में वाइस प्रेसिडेंट रहे. वर्ल्ड एसोसिएशन आफ न्यूजपेपर, फ्रांस के वर्ल्ड एडिटर फोरम में सक्रिय भागीदारी रही. एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया, नई दिल्ली के सदस्य रहे. बिहार राज्य साक्षरता मिशन के सदस्य रहे. 2003 में सूरीनाम में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए विदेश मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से आयोजन समिति के सदस्य रहे. भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के हिंदी सलाहकार समिति से बतौर सदस्य जुड़ाव रहा. कॉमनवेल्थ ह्यमन राइट्स इनिसिएटिव, नई दिल्ली से कार्यकारी समिति सदस्य के रूप में जुड़े रहे. सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान, नई दिल्ली की कार्यकारी समिति के सदस्य रहे.
संसदीय राजनीति
राजनीति से जुड़ाव तो छात्र जीवन में ही हुआ. इमरजेंसी के दिनों से ही. बाद में भी अनेकानेक तरीके से राजनीतिक हस्तक्षेप करते रहे. सामाजिक सक्रियता के जरिये, पत्रकारिता के जरिये. राजनीति प्रिय विषय बना रहा. इस मान्यता के साथ कि समाज, राज्य और देश की नियति बदलने का काम दीर्घकाल के लिए, ठोस रूप में राजनीति ही करती है. व्यापक बदलाव लाने का औजार राजनीति ही है. पर, सक्रिय रूप से संसदीय राजनीति से जुड़ाव 2014 में हुआ. अप्रैल 2014 में में जनता दल यू की ओर से बिहार से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए. 09 अगस्त 2018 को राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए निर्वाचित हुए. अप्रैल 2020 में पुन: जदयू की ओर से, बिहार से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए. फिर सितंबर 2020 में राज्यसभा के उपसभापति चुने गये.
श्री हरिवंश की लिखित व संपादित पुस्तकें
करीब चार दशकों तक सक्रिय पत्रकारिता में रहे. फिलहाल राज्यसभा के उपसभापति, श्री हरिवंश की अब तक प्रकाशित व संपादित कुल पुस्तकों की संख्या 25 है. इनमें हिंदी में लिखित किताबों की संख्या आठ (09) व अंग्रेजी में एक (01) है. शेष पंद्रह (15) पुस्तकें श्री हरिवंश द्वारा संपादित हैं.
लिखित पुस्तक (अंग्रेजी में)
•चंद्रशेखर : द लास्ट आइकॉन ऑफ ऑइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स – (2019) : रूपा पब्लिकेशंस. इसका विमोचन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 24 जुलाई 2019 को संसद भवन की लाइब्रेरी बिल्डिंग के बालयोगी सभागार में किया था।
लिखित पुस्तकें ( हिंदी में)
•झारखंड: समय और सवाल – (2012) प्रभात प्रकाशन
•झारखंड: सपने और यथार्थ – (2012) प्रभात प्रकाशन
•शब्द संसार – (2016) इंडिया टेलिंग बुक्स
•दिल से मैंने दुनिया देखी – (2018) राजकमल प्रकाशन
•गणेश मंत्री : आधुनिक हिंदी पत्रकारिता के यशस्वी स्तंभ- (2022) : रूद्र पब्लिशर्स
•कलश – (2022) वाणी प्रकाशन
•सृष्टि का मुकुटः कैलास मानसरोवर – (2022) वाणी प्रकाशन
•पथ के प्रकाश पुंज – (2022) : वाणी प्रकाशन
•सत्याग्रही संन्यासी (भवानी दयाल संन्यासी की संक्षिप्त जीवनी) (2023), नॉटनल प्रकाशन (ई बुक)
1. बिहार: सपना ओर सच
2. झारखंड: संपन्न धरती, उदास बसंत
3. झारखंड: चुनौतियां भी, अवसर भी
4. राष्ट्रीय चरित्र का आईना
5. पतन की होड़
6. भविष्य का भारत
7. सरोकार और संवाद
8. अतीत के पन्ने
9. ऊर्जा के उत्स
10. सफर के शेष
संपादित पुस्तकें
•झारखंड: दिसुम मुक्तिगाथा और सृजन के सपने – (2002) राजकमल प्रकाशन
•जोहार झारखंड – (2002) राजकमल प्रकाशन
•झारखंड: सुशासन अब भी संभावना है – (2009) प्रभात प्रकाशन
•संताल हूल: आदिवासी प्रतिरोध संस्कृति – (2009) प्रकाशन संस्थान
•झारखंड: अस्मिता के आयाम – (2011) प्रकाशन संस्थान
•बिहारनामा (2011) – प्रकाशन संस्थान
•बिहार: रास्ते की तलाश – (2011) प्रकाशन संस्थान
•बिहार: अस्मिता के आयाम – (2011) प्रकाशन संस्थान
पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर पर संपादित पुस्तकें
•चंद्रशेखर के विचार – (2002) राजकमल प्रकाशन
•चंद्रशेखर संवाद एक : उथल-पुथल और ध्रुवीकरण -(2002) राजकमल प्रकाशन
•चंद्रशेखर संवाद दो : रचनात्मक बेचैनी में – (2002) राजकमल प्रकाशन
• चंद्रशेखर संवाद तीन : एक दूसरे शिखर से – (2002) राजकमल प्रकाशन
•चंद्रशेखर के बारे में – (2002) राजकमल प्रकाशन
•मेरी जेल डायरी: एक – (2002) राजकमल प्रकाशन
•मेरी जेल डायरी: दो – (2002) राजकमल प्रकाशन
